गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत

गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत

घर के दर-ओ-दीवार भी हैं कमज़ोर बहुत

तेरे सामने आते हुए घबराता हूँ

लब पे तिरा इक़रार है दिल में चोर बहुत

नक़्श कोई बाक़ी रह जाए मुश्किल है

आज लहू की रवानी में है ज़ोर बहुत

दिल के किसी कोने में पड़े होंगे अब भी

एक खुला आकाश पतंगें डोर बहुत

मुझ से बिछड़ कर होगा समुंदर भी बेचैन

रात ढले तो करता होगा शोर बहुत

आ के कभी वीरानी-ए-दिल का तमाशा कर

इस जंगल में नाच रहे हैं मोर बहुत

अपने बसेरे पंछी लौट न पाया 'ज़ेब'

शाम घटा भी उट्ठी थी घनघोर बहुत

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