दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
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इन में लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल
बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
वहीं हैं दिल के क़राइन तमाम कहते हैं
सफ़र नामा
तुम ही कहो क्या करना है
भाई
तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है
तीन मंज़र
रात ढलने लगी है सीनों में
जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है
फिर लौटा है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब सफ़र से
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई