बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
तुम अच्छे मसीहा हो शिफ़ा क्यूँ नहीं देते
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वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया
टूटी जहाँ जहाँ पे कमंद
अपने इनआम-ए-हुस्न के बदले
चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का
इस वक़्त तो यूँ लगता है
चंद रोज़ और मिरी जान
मैं तेरे सपने देखूँ
यूँ बहार आई है इस बार कि जैसे क़ासिद
तमाम शब दिल-ए-वहशी तलाश करता है
फलस्तीनी बच्चे के लिए लोरी
मोरी अर्ज सुनो
न पूछ जब से तिरा इंतिज़ार कितना है