अपने इनआम-ए-हुस्न के बदले
हम तही-दामनों से क्या लेना
आज फ़ुर्क़त-ज़दों पे लुत्फ़ करो
फिर कभी सब्र आज़मा लेना
Jaun Eliya
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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आज तंहाई किसी हमदम-ए-देरीं की तरह
मिरी चश्म-ए-तन-आसाँ को बसीरत मिल गई जब से
अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें
उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर
नज़्म
हमारे दम से है कू-ए-जुनूँ में अब भी ख़जिल
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं
हिज्र की राख और विसाल के फूल
बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
अश्गाबाद की शाम
यहाँ से शहर को देखो
मंज़र