और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया
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रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई
फिर आईना-ए-आलम शायद कि निखर जाए
यास
सुरुद-ए-शबाना
सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी
हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी
बुनियाद कुछ तो हो
ग़म-ब-दिल शुक्र-ब-लब मस्त ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए
दीवार-ए-शब और अक्स-ए-रुख़-ए-यार सामने
अपने इनआम-ए-हुस्न के बदले
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई