इन में लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल
महफ़िल में कुछ चराग़ फ़रोज़ाँ हुए तो हैं
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ऐ हबीब-ए-अम्बर-दस्त!
यार अग़्यार हो गए हैं
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम
अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है
दिल-ए-मन मुसाफ़िर-ए-मन
वो अहद-ए-ग़म की काहिश-हा-ए-बे-हासिल को क्या समझे
उन दिनों रस्म-ओ-रह-ए-शहर-ए-निगाराँ क्या है
दुआ
मिरी चश्म-ए-तन-आसाँ को बसीरत मिल गई जब से
जवाँ-मर्दी उसी रिफ़अत पे पहुँची
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था