तिरे वा'दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए
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हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे
ऐ जल्वा-ए-जानाना फिर ऐसी झलक दिखला
मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिए
ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का 'फ़ना'
ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर
कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन
डूबने वाले की मय्यत पर लाखों रोने वाले हैं
सहता रहा जफ़ा-ए-दोस्त कहता रहा अदा-ए-दोस्त
यूँ तिरी तलाश में तेरे ख़स्ता-जाँ चले
दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा
सब होंगे उस से अपने तआरुफ़ की फ़िक्र में
मेरे चेहरे से ग़म आश्कारा नहीं