मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिए
तर्क-ए-तअल्लुक़ात का एहसास मर न जाए
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दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
मेरे चेहरे से ग़म आश्कारा नहीं
तर्क-ए-वतन के बाद ही क़द्र-ए-वतन हुई
साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या है
डूबने वाले की मय्यत पर लाखों रोने वाले हैं
कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन
हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया
इक तिश्ना-लब ने बढ़ के जो साग़र उठा लिया
कोई पाबंद-ए-मोहब्बत ही बता सकता है
तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ
या रब मिरी हयात से ग़म का असर न जाए
झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए