कोई पाबंद-ए-मोहब्बत ही बता सकता है
एक दीवाने का ज़ंजीर से रिश्ता क्या है
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कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है
जब मेरे रास्ते में कोई मय-कदा पड़ा
चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद
यूँ तिरी तलाश में तेरे ख़स्ता-जाँ चले
तर्क-ए-वतन के बाद ही क़द्र-ए-वतन हुई
ऐ जल्वा-ए-जानाना फिर ऐसी झलक दिखला
दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
इस तरह रहबर ने लूटा कारवाँ
तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ
वो ख़ानुमाँ-ख़राब न क्यूँ दर-ब-दर फिरे
सहता रहा जफ़ा-ए-दोस्त कहता रहा अदा-ए-दोस्त
इक तुझ को देखने के लिए बज़्म में मुझे