जल्वा हो तो जल्वा हो पर्दा हो तो पर्दा हो
तौहीन-ए-तजल्ली है चिलमन से न झाँका कर
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कोई पाबंद-ए-मोहब्बत ही बता सकता है
दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
बे-तकल्लुफ़ वो औरों से हैं
डूबने वाले की मय्यत पर लाखों रोने वाले हैं
ग़ैरत-ए-अहल-ए-चमन को क्या हुआ
इस तरह रहबर ने लूटा कारवाँ
कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है
वो आँख क्या जो आरिज़ ओ रुख़ पर ठहर न जाए
क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात भी क्या चीज़ है 'फ़ना'
हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया
दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा