क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात भी क्या चीज़ है 'फ़ना'
राह-ए-फ़रार मिल न सकी उम्र-भर फिरे
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ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का 'फ़ना'
हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे
घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ
ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर
मुझे प्यार से तिरा देखना मुझे छुप छुपा के वो देखना
कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है
जल्वा हो तो जल्वा हो पर्दा हो तो पर्दा हो
साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या है
मेरे चेहरे से ग़म आश्कारा नहीं
दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
ग़ैरत-ए-अहल-ए-चमन को क्या हुआ
मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिए