क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में
उन की तरफ़ से आप लिखे ख़त जवाब में
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साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं
फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर
आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद
समझो पत्थर की तुम लकीर उसे
ख़ार-ए-हसरत बयान से निकला
शब-ए-वस्ल ज़िद में बसर हो गई
मज़े इश्क़ के कुछ वही जानते हैं
ये सैर है कि दुपट्टा उड़ा रही है हवा
मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं
की तर्क-ए-मय तो माइल-ए-पिंदार हो गया
इस अदा से वो जफ़ा करते हैं
जोश-ए-रहमत के वास्ते ज़ाहिद