क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में
उन की तरफ़ से आप लिखे ख़त जवाब में
Wasi Shah
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बहुत रोया हूँ मैं जब से ये मैं ने ख़्वाब देखा है
हसरतें ले गए इस बज़्म से चलने वाले
ऐ दाग़ अपनी वज़्अ' हमेशा यही रही
कोई छींटा पड़े तो 'दाग़' कलकत्ते चले जाएँ
लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से
ठोकर भी राह-ए-इश्क़ में खानी ज़रूर है
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
मज़े इश्क़ के कुछ वही जानते हैं
सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना
शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं