सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं
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ख़ुदा की क़सम उस ने खाई जो आज
जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता
दिल परेशान हुआ जाता है
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
लीजिए सुनिए अब अफ़्साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ से
इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है
वो दिन गए कि 'दाग़' थी हर दम बुतों की याद
इधर देख लेना उधर देख लेना
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में