रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैं
उधर जाता है देखें या इधर परवाना आता है
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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वो दिन गए कि 'दाग़' थी हर दम बुतों की याद
मर्ग-ए-दुश्मन का ज़ियादा तुम से है मुझ को मलाल
नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो
रंज की जब गुफ़्तुगू होने लगी
बे-तलब जो मिला मिला मुझ को
फ़सुर्दा-दिल कभी ख़ल्वत न अंजुमन में रहे
दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ
जिस में लाखों बरस की हूरें हों
अब तो बीमार-ए-मोहब्बत तेरे
भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले
पूछिए मय-कशों से लुत्फ़-ए-शराब
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है