बे-तलब जो मिला मिला मुझ को
बे-ग़रज़ जो दिया दिया तू ने
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ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती
फिर गया जब से कोई आ के हमारे दर तक
नासेह ने मेरा हाल जो मुझ से बयाँ किया
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
क़त्ल की सुन के ख़बर ईद मनाई मैं ने
रह गए लाखों कलेजा थाम कर
अयादत को मिरी आ कर वो ये ताकीद करते हैं
चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़
शिरकत-ए-ग़म भी नहीं चाहती ग़ैरत मेरी
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा