बे-ज़बानी ज़बाँ न हो जाए
राज़-ए-उल्फ़त अयाँ न हो जाए
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दिल का क्या हाल कहूँ सुब्ह को जब उस बुत ने
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमअ-ए-ख़ूबी
बने हैं जब से वो लैला नई महमिल में रहते हैं
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया
न जाना कि दुनिया से जाता है कोई
जिस जगह बैठे मिरा चर्चा किया
इधर देख लेना उधर देख लेना
अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
उस के दर तक किसे रसाई है
हज़रत-ए-दिल आप हैं किस ध्यान में