भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमअ-ए-ख़ूबी
मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है
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दिल का क्या हाल कहूँ सुब्ह को जब उस बुत ने
उन की फ़रमाइश नई दिन रात है
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
आप का ए'तिबार कौन करे
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
लीजिए सुनिए अब अफ़्साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ से
रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैं
वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई
सर मेरा काट के पछ्ताइएगा
कहीं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे