वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई
है ज़रा सी बात ख़ुश करना दिल-ए-नाशाद का
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रह गए लाखों कलेजा थाम कर
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
साक़िया तिश्नगी की ताब नहीं
तुम को चाहा तो ख़ता क्या है बता दो मुझ को
मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
निगह निकली न दिल की चोर ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं निकली
डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं
हज़रत-ए-'दाग़' है ये कूचा-ए-क़ातिल उठिए
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
अभी आई भी नहीं कूचा-ए-दिलबर से सदा
ख़ार-ए-हसरत बयान से निकला