साक़िया तिश्नगी की ताब नहीं
ज़हर दे दे अगर शराब नहीं
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आप पछताएँ नहीं जौर से तौबा न करें
इस वहम में वो 'दाग़' को मरने नहीं देते
हज़रत-ए-'दाग़' है ये कूचा-ए-क़ातिल उठिए
वो ज़माना नज़र नहीं आता
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
दिल मुब्तला-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार ही रहा
नासेह ने मेरा हाल जो मुझ से बयाँ किया
सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना
अयादत को मिरी आ कर वो ये ताकीद करते हैं
बात तक करनी न आती थी तुम्हें
दिल-ए-नाकाम के हैं काम ख़राब