वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Gulzar
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1573) Peoples Rate This
क्या लुत्फ़-ए-दोस्ती कि नहीं लुत्फ़-ए-दुश्मनी
तुम को चाहा तो ख़ता क्या है बता दो मुझ को
ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया
क्या इज़्तिराब-ए-शौक़ ने मुझ को ख़जिल किया
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
दिल क्या मिलाओगे कि हमें हो गया यक़ीं
इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
जिस ख़त पे ये लगाई उसी का मिला जवाब
शिरकत-ए-ग़म भी नहीं चाहती ग़ैरत मेरी
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं