अभी आई भी नहीं कूचा-ए-दिलबर से सदा
खिल गई आज मिरे दिल की कली आप ही आप
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(821) Peoples Rate This
ग़श खा के 'दाग़' यार के क़दमों पे गिर पड़ा
ना-उमीदी बढ़ गई है इस क़दर
इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं
इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है
हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदो तुम को
वो जब चले तो क़यामत बपा थी चारों तरफ़
दिल का क्या हाल कहूँ सुब्ह को जब उस बुत ने
इधर देख लेना उधर देख लेना
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
उन की फ़रमाइश नई दिन रात है
दिल परेशान हुआ जाता है