दिल का क्या हाल कहूँ सुब्ह को जब उस बुत ने
ले के अंगड़ाई कहा नाज़ से हम जाते हैं
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दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात
साक़िया तिश्नगी की ताब नहीं
कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा
अभी आई भी नहीं कूचा-ए-दिलबर से सदा
मर्ग-ए-दुश्मन का ज़ियादा तुम से है मुझ को मलाल
लाख देने का एक देना था
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
देखना हश्र में जब तुम पे मचल जाऊँगा
कहते हैं जिस को हूर वो इंसाँ तुम्हीं तो हो
इधर देख लेना उधर देख लेना