ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा
मैं जो कह दूँ आप पर मरता हूँ मैं
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मुअज़्ज़िन ने शब-ए-वस्ल अज़ाँ पिछले पहर
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
सितम-ईजाद के अंदाज़-ए-सितम तो देखो
इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का
इस लिए वस्ल से इंकार है हम जान गए
वो कहते हैं क्या ज़ोर उठाओगे तुम ऐ 'दाग़'
दिल ही तो है न आए क्यूँ दम ही तो है न जाए क्यूँ
सुन के मिरा फ़साना उन्हें लुत्फ़ आ गया
अभी आई भी नहीं कूचा-ए-दिलबर से सदा
काबे की है हवस कभी कू-ए-बुताँ की है
नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो