दिल क्या मिलाओगे कि हमें हो गया यक़ीं
तुम से तो ख़ाक में भी मिलाया न जाएगा
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ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
इधर देख लेना उधर देख लेना
हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदो तुम को
ज़ीस्त से तंग हो ऐ 'दाग़' तो जीते क्यूँ हो
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात
उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने
लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से
ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं
ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल