जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक
वो मिरे दिल का राज़ क्या जानें
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ये तो नहीं कि तुम सा जहाँ में हसीं नहीं
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना
सुनाई जाती हैं दर-पर्दा गालियाँ मुझ को
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो
ज़माने के क्या क्या सितम देखते हैं
हम भी क्या ज़िंदगी गुज़ार गए
जल्वे मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ के हैं
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
समझो पत्थर की तुम लकीर उसे