ज़माने के क्या क्या सितम देखते हैं
हमीं जानते हैं जो हम देखते हैं
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Mir Taqi Mir
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दिल चुरा कर नज़र चुराई है
वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई
क्यूँ वस्ल की शब हाथ लगाने नहीं देते
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो
डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम
ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता
जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक
बहुत रोया हूँ मैं जब से ये मैं ने ख़्वाब देखा है