मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते
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निगह निकली न दिल की चोर ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं निकली
वाइज़ बड़ा मज़ा हो अगर यूँ अज़ाब हो
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
छेड़ माशूक़ से कीजे तो ज़रा थम थम कर
साक़िया तिश्नगी की ताब नहीं
वो जब चले तो क़यामत बपा थी चारों तरफ़
मोहब्बत का असर जाता कहाँ है
दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ
क्या इज़्तिराब-ए-शौक़ ने मुझ को ख़जिल किया
जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थीं