ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया
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रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
जब वो बुत हम-कलाम होता है
और होंगे तिरी महफ़िल से उभरने वाले
वो ज़माना भी तुम्हें याद है तुम कहते थे
ख़बर सुन कर मिरे मरने की वो बोले रक़ीबों से
मुझ को मज़ा है छेड़ का दिल मानता नहीं
शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं
अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
पूछिए मय-कशों से लुत्फ़-ए-शराब
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
फ़सुर्दा-दिल कभी ख़ल्वत न अंजुमन में रहे