रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था
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उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
क्यूँ वस्ल की शब हाथ लगाने नहीं देते
डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं
आप का ए'तिबार कौन करे
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
फिर गया जब से कोई आ के हमारे दर तक
ज़ीस्त से तंग हो ऐ 'दाग़' तो जीते क्यूँ हो
उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं
पयामी कामयाब आए न आए
क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में
कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया
नासेह ने मेरा हाल जो मुझ से बयाँ किया