क्यूँ वस्ल की शब हाथ लगाने नहीं देते
माशूक़ हो या कोई अमानत हो किसी की
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होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
उज़्र उन की ज़बान से निकला
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
यूँ भी हज़ारों लाखों में तुम इंतिख़ाब हो
साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं
जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा
ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया
आती है बात बात मुझे बार बार याद
क्या पूछते हो कौन है ये किस की है शोहरत
इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा
कल तक तो आश्ना थे मगर आज ग़ैर हो
होश ओ हवास ओ ताब ओ तवाँ 'दाग़' जा चुके