होश ओ हवास ओ ताब ओ तवाँ 'दाग़' जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया
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ग़म्ज़ा भी हो सफ़्फ़ाक निगाहें भी हों ख़ूँ-रेज़
ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा
इस नहीं का कोई इलाज नहीं
दिल परेशान हुआ जाता है
ठोकर भी राह-ए-इश्क़ में खानी ज़रूर है
क्या इज़्तिराब-ए-शौक़ ने मुझ को ख़जिल किया
क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है
जो गुज़रते हैं 'दाग़' पर सदमे
दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
हाथ निकले अपने दोनों काम के
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमअ-ए-ख़ूबी
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा