दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया
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ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती
उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने
हसरतें ले गए इस बज़्म से चलने वाले
आप का ए'तिबार कौन करे
साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं
पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह
शब-ए-वस्ल ज़िद में बसर हो गई
जिस में लाखों बरस की हूरें हों
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा
साथ शोख़ी के कुछ हिजाब भी है