दिल ले के उन की बज़्म में जाया न जाएगा
ये मुद्दई बग़ल में छुपाया न जाएगा
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क्या तर्ज़-ए-कलाम हो गई है
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो
उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं
समझो पत्थर की तुम लकीर उसे
क्या पूछते हो कौन है ये किस की है शोहरत
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमअ-ए-ख़ूबी
जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा
बे-तलब जो मिला मिला मुझ को
हम भी क्या ज़िंदगी गुज़ार गए
जल्वे मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ के हैं
हज़रत-ए-दिल आप हैं किस ध्यान में