जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई
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ज़ालिम ने क्या निकाली रफ़्तार रफ़्ता रफ़्ता
जब वो बुत हम-कलाम होता है
दफ़अ'तन तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ में भी रुस्वाई है
जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा
ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने
आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद
तेरी सूरत को देखता हूँ मैं
रह गए लाखों कलेजा थाम कर
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं