ज़ालिम ने क्या निकाली रफ़्तार रफ़्ता रफ़्ता
इस चाल पर चलेगी तलवार रफ़्ता रफ़्ता
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वो कहते हैं क्या ज़ोर उठाओगे तुम ऐ 'दाग़'
बात मेरी कभी सुनी ही नहीं
इक अदा मस्ताना सर से पाँव तक छाई हुई
नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो
न जाना कि दुनिया से जाता है कोई
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
आप का ए'तिबार कौन करे
इस अदा से वो जफ़ा करते हैं
इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
साक़िया तिश्नगी की ताब नहीं