इक अदा मस्ताना सर से पाँव तक छाई हुई
उफ़ तिरी काफ़िर जवानी जोश पर आई हुई
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आप का ए'तिबार कौन करे
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
उन की फ़रमाइश नई दिन रात है
दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें
जल्वे मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ के हैं
बे-ज़बानी ज़बाँ न हो जाए
लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से
ठोकर भी राह-ए-इश्क़ में खानी ज़रूर है
आरज़ू है वफ़ा करे कोई
हाथ निकले अपने दोनों काम के
कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया
हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए बैठ गए