हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए बैठ गए
और होंगे तिरी महफ़िल से उभरने वाले
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
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रूह किस मस्त की प्यासी गई मय-ख़ाने से
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
बात का ज़ख़्म है तलवार के ज़ख़्मों से सिवा
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है
सितम-ईजाद के अंदाज़-ए-सितम तो देखो
ज़माने के क्या क्या सितम देखते हैं
बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
हाथ निकले अपने दोनों काम के
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
आती है बात बात मुझे बार बार याद
मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल