हज़रत-ए-दिल आप हैं किस ध्यान में
मर गए लाखों इसी अरमान में
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जब वो बुत हम-कलाम होता है
दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ
मुअज़्ज़िन ने शब-ए-वस्ल अज़ाँ पिछले पहर
अयादत को मिरी आ कर वो ये ताकीद करते हैं
ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
मर्ग-ए-दुश्मन का ज़ियादा तुम से है मुझ को मलाल
देखना हश्र में जब तुम पे मचल जाऊँगा
सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
यूँ मेरे साथ दफ़्न दिल-ए-बे-क़रार हो
इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा