रूह किस मस्त की प्यासी गई मय-ख़ाने से
मय उड़ी जाती है साक़ी तिरे पैमाने से
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इस नहीं का कोई इलाज नहीं
न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का
जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता
उज़्र उन की ज़बान से निकला
कहीं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में
वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई
दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए
दिल क्या मिलाओगे कि हमें हो गया यक़ीं
आप का ए'तिबार कौन करे
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया