ठोकर भी राह-ए-इश्क़ में खानी ज़रूर है
चलता नहीं हूँ राह को हमवार देख कर
Habib Jalib
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Wasi Shah
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1302) Peoples Rate This
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
चाक हो पर्दा-ए-वहशत मुझे मंज़ूर नहीं
निगाह-ए-शोख़ जब उस से लड़ी है
ज़माना दोस्ती पर इन हसीनों की न इतराए
जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा
ज़माने के क्या क्या सितम देखते हैं
रुख़-ए-रौशन के आगे शम्अ रख कर वो ये कहते हैं
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
रूह किस मस्त की प्यासी गई मय-ख़ाने से
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
अभी आई भी नहीं कूचा-ए-दिलबर से सदा
रंज की जब गुफ़्तुगू होने लगी