दुनिया में जानता हूँ कि जन्नत मुझे मिली
राहत अगर ज़रा सी मुसीबत में मिल गई
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तुम को आशुफ़्ता-मिज़ाजों की ख़बर से क्या काम
बे-तलब जो मिला मिला मुझ को
आरज़ू है वफ़ा करे कोई
ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
दिल ही तो है न आए क्यूँ दम ही तो है न जाए क्यूँ
डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ
रूह किस मस्त की प्यासी गई मय-ख़ाने से