तुम को आशुफ़्ता-मिज़ाजों की ख़बर से क्या काम
तुम सँवारा करो बैठे हुए गेसू अपने
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बात मेरी कभी सुनी ही नहीं
हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से
न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का
की तर्क-ए-मय तो माइल-ए-पिंदार हो गया
वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
हज़रत-ए-दिल आप हैं किस ध्यान में
हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के 'दाग़'
मुझ को मज़ा है छेड़ का दिल मानता नहीं
पूछिए मय-कशों से लुत्फ़-ए-शराब
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं