ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ
अभी फिर रूठ जाएँगे अभी तो मन के बैठे हैं
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ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था
वो दिन गए कि 'दाग़' थी हर दम बुतों की याद
दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ
दिल चुरा कर नज़र चुराई है
देखना अच्छा नहीं ज़ानू पे रख कर आइना
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
इस नहीं का कोई इलाज नहीं
न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का
फिर गया जब से कोई आ के हमारे दर तक