इस नहीं का कोई इलाज नहीं
रोज़ कहते हैं आप आज नहीं
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ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
ये तो नहीं कि तुम सा जहाँ में हसीं नहीं
ख़बर सुन कर मिरे मरने की वो बोले रक़ीबों से
डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने
ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ
दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमअ-ए-ख़ूबी
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ