जो गुज़रते हैं 'दाग़' पर सदमे
आप बंदा-नवाज़ क्या जानें
Rahat Indori
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Jaun Eliya
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Gulzar
Wasi Shah
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Allama Iqbal
Habib Jalib
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रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
काबे की है हवस कभी कू-ए-बुताँ की है
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
ईद है क़त्ल मिरा अहल-ए-तमाशा के लिए
मिरी आह का तुम असर देख लेना
ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है
'मीर' का रंग बरतना नहीं आसाँ ऐ 'दाग़'
सर मेरा काट के पछ्ताइएगा
तबीअ'त कोई दिन में भर जाएगी
हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए बैठ गए
देखना अच्छा नहीं ज़ानू पे रख कर आइना
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए