मिरी आह का तुम असर देख लेना
वो आएँगे थामे जिगर देख लेना
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सर मेरा काट के पछ्ताइएगा
जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता
लज़्ज़त-ए-इश्क़ इलाही मिट जाए
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात
क्या इज़्तिराब-ए-शौक़ ने मुझ को ख़जिल किया
मर्ग-ए-दुश्मन का ज़ियादा तुम से है मुझ को मलाल
निगह निकली न दिल की चोर ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं निकली
न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
इक अदा मस्ताना सर से पाँव तक छाई हुई