ईद है क़त्ल मिरा अहल-ए-तमाशा के लिए
सब गले मिलने लगे जब कि वो जल्लाद आया
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क्या पूछते हो कौन है ये किस की है शोहरत
होश ओ हवास ओ ताब ओ तवाँ 'दाग़' जा चुके
तुम अगर अपनी गूँ के हो माशूक़
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
हाथ निकले अपने दोनों काम के
हज़रत-ए-'दाग़' है ये कूचा-ए-क़ातिल उठिए
ज़ीस्त से तंग हो ऐ 'दाग़' तो जीते क्यूँ हो
जो गुज़रते हैं 'दाग़' पर सदमे
सर मेरा काट के पछ्ताइएगा
समझो पत्थर की तुम लकीर उसे
ये सैर है कि दुपट्टा उड़ा रही है हवा
मोहब्बत का असर जाता कहाँ है