हम भी क्या ज़िंदगी गुज़ार गए
दिल की बाज़ी लगा के हार गए
Habib Jalib
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Gulzar
Allama Iqbal
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Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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ख़ार-ए-हसरत बयान से निकला
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें
इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का
आओ मिल जाओ कि ये वक़्त न पाओगे कभी
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रात
हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदो तुम को
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं
आरज़ू है वफ़ा करे कोई
ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए