आओ मिल जाओ कि ये वक़्त न पाओगे कभी
मैं भी हम-राह ज़माने के बदल जाऊँगा
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तदबीर से क़िस्मत की बुराई नहीं जाती
मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
लाख देने का एक देना था
जिस जगह बैठे मिरा चर्चा किया
सुन के मिरा फ़साना उन्हें लुत्फ़ आ गया
वो दिन गए कि 'दाग़' थी हर दम बुतों की याद
हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
निगाह-ए-शोख़ जब उस से लड़ी है
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं